Monday 27 October 2014

आर्थिक सुधार




आर्थिक सुधारों की उड़ान का समय

प्रमोद जोशी 

नरेंद्र मोदी की सरकार वोटर को संतुष्ट करने में कामयाब है या नहीं इसका संकेतक महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को माना जाए तो कहा जा सकता है कि जनता फिलहाल सरकार के साथ खड़ी है और लगता है सरकार अब आर्थिक नीतियों से जुड़े बड़े फैसले अपेक्षाकृत आसानी से कर सकेगी। उसने कोल सेक्टर और पेट्रोलियम को लेकर दो बड़े फैसले कर भी लिए हैं। मई में नई सरकार बनने के बाद के शुरुआती फैसलों में से एक पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से जुड़ा था। फिर प्याज, टमाटर और आलू की कीमतों को लेकर सरकार की किरकिरी हुई। मॉनसून भी अच्छा नहीं रहा। अंदेशा था कि दीपावली के मौके पर मतदाता मोदी सरकार के प्रति नाराजगी व्यक्त करेगा पर ऐसा नहीं हुआ। जैसा कि हर साल होता है, दीपावली के ठीक पहले सब्जी मंडियों में दाम गिरने लगे हैं। नया आलू आने के बाद उसके दाम गिरेंगे। वित्तमंत्री को लगता है कि अर्थ-व्यवस्था की तीसरी और चौथी तिमाही काफी बेहतर होने वाली है। जिस सबसे बड़े फैसले का भारत के उद्योग-व्यापार जगत को इंतजार है, वह है ब्याज दरों का। मुद्रास्फीति के नवीनतम आंकड़े गिरावट का संकेत दे रहे हैं, फिर भी अभी ब्याज की दरें गिरेंगी नहीं, क्योंकि रिजर्व बैंक को भरोसा नहीं है कि वे अपेक्षित सीमा तक गिरेंगी। शायद यही वजह है कि जुलाई और अगस्त में औद्योगिक उत्पादन 0.5 और 0.4 फीसद ही बढ़ पाया। हमारी भारी ब्याज दरों की वजह से पूंजी हासिल कर पाना महंगा सौदा हो गया है। रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति से जुड़े जो मानक बनाए हैं, उन्हें देखें तो जनवरी 2016 तक ब्याज दरें कम कर पाना संभव नहीं पर औद्योगिक उत्पादन, भवन निर्माण और उपभोक्ता सामग्री में तेजी के लिए ब्याज दरें नीचे आना जरूरी हैं। ये दोनों सेक्टर रोजगार बढ़ाने में भी जरूरी भूमिका निभाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की छमाही रपट में अगले साल भारत की संवृद्धि दर 6.4 फीसद होने की संभावना है। पिछले साल भारत की विकास दर पांच फीसद से भी नीचे चली गई थी। कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर वापस आ रही है। संकेत यह भी है कि सरकार आर्थिक सुधार से जुड़े बड़े फैसले करेगी। यह भी सच है कि राजनीतिक लिहाज से सरकार के पास केवल लोकसभा में ताकत है। राज्यसभा में उसकी स्थिति अच्छी नहीं है पर महाराष्ट्र और हरियाणा की नई विधानसभाओं के संख्याबल को देखते हुए कह सकते हैं कि स्थिति कुछ सुधरेगी। वैसे 2017 में जाकर ही राज्यसभा में भाजपा की स्थिति मजबूत हो पाएगी। उससे पहले महत्वपूर्ण विधेयकों को पास कराने के लिए उसे कांग्रेस तथा अन्य दलों की मदद लेनी होगी। हाल के दो बड़े फैसलों ने सरकार की दिशा का संकेत दिया है। शनिवार को सरकार ने पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़े कुछ बड़े फैसले किए थे। और अब उसने कोयला क्षेत्र में काफी बड़ा कदम उठाया है। कोल ब्लॉक आवंटन रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जो असमंजस पैदा हुआ था, उसे दूर करते हुए सरकार ने कोयला ब्लॉकों की नीलामी का रास्ता साफ करते हुए पारदर्शी व्यवस्था की घोषणा की है। यह नीलामी इंटरनेट के जरिए होगी। कैबिनेट ने अध्यादेश जारी करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज भी दी है। अध्यादेश इन ब्लॉकों की जमीन सरकार के पास लौटाने का रास्ता साफ करेगा। इसके पहले सरकार ने डीजल को नियंतण्रमुक्त करने की घोषणा की थी। इसके साथ डीजल की कीमतों में 3 रु पए 37 पैसे की कमी आ गई। वित्तमंत्री ने बताया कि पेट्रोल की तरह ही अब डीजल भी बाजार के हवाले कर दिया गया है। एलपीजी सिलेंडरों की सब्सिडी सीधे उपभोक्ताओं के खाते में ट्रांसफर होगी। दस नवम्बर से खाता में राशि ट्रांसफर का काम शुरू हो जाएगा। इसी उद्देश्य से जन-धन योजना के तहत करोड़ों खाते खुलवाए गए हैं। पेट्रोलियम सब्सिडी खत्म होने का सीधा प्रभाव मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। आयात व्यय कम होने से विदेशी मुद्रा का दबाव कम होगा। रपए की कीमत बढ़ेगी। संयोग से डीजल के दाम नियंतण्रमुक्त करने का यह सुनहरा मौका था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय तेल के दाम चार साल के सबसे निचले स्तर पर हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को सुझाव दिया था कि ‘इस मौके का फायदा उठाएं।’ इस वक्त मुद्रास्फीति पांच साल के सबसे निचले स्तर पर है और तेल कंपनियां पहली बार डीजल पर मुनाफा कमा रही हैं। पेट्रोलियम सब्सिडी का इतिहास भारत की राजनीति के खोखलेपन की कहानी कहता है। देश में पेट्रोलियम की कीमतें नियंत्रण-मुक्त करने का मूल प्रस्ताव 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल ने रखा था। सरकार ने उसे पूरी तरह लागू करने की तारीख मार्च 2002 तय कर दी थी। हालांकि तब तक केंद्र में एनडीए की सरकार आ चुकी थी, पर उसने भी 2001 के बजट में आास्त किया था कि मार्च 2002 तक पेट्रोलियम को नियंतण्रमुक्त कर दिया जाएगा। पर एन वक्त उस सरकार ने भी 2004 के चुनावों के मद्देनजर पेट्रोल की कीमतें बढ़ने से रोक राजकीय कोष पर बोझ बढ़ा दिया। इसके बाद आई यूपीए सरकार के पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने नियंतण्रफिर से लागू कर दिए। बहरहाल 2008 की नियंतण्र मंदी के बाद से केंद्र सरकार पर सब्सिडी को काबू में लाने का दबाव था। यह काम चरणबद्ध तरीके से अब पूरा हो पाया है। जून 2010 में पेट्रोल की कीमतों को नियंतण्रमुक्त किया गया। इसके साथ ही पिछले साल जनवरी में डीजल के दाम में हर महीने 50 पैसे प्रति लीटर वृद्धि का फैसला हुआ। पेट्रोल के दाम अब कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के हिसाब से ही तय होते हैं। पिछले अगस्त के बाद से इसमें पांच बार कमी हो चुकी है। उधर डीजल बिक्री से होने वाला नुकसान या अंडर रिकवरी समाप्त हो चुकी है और तेल कंपनियों को सितम्बर के दूसरे पखवाड़े से मुनाफा होने लगा। वित्त मंत्री ने पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए इस साल के बजट में 63,400 करोड़ का प्रावधान किया था जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 25 प्रतिशत कम था। अब लगता है सरकार पर सब्सिडी का बोझ और कम हो जाएगा। डीजल की कीमतें नियंतण्रमुक्त करना मोदी सरकार का बड़ा सुधारवादी कदम माना जा रहा है। निवेशकों के लिए यह इसका संकेत है कि सरकार अब आर्थिक मजबूती पर ध्यान देगी। अब बाजार बीमा संशोधन विधेयक जैसे कई सुधारों की उम्मीद कर रहा है। घरेलू शेयर बाजार में इस साल अब तक करीब 26 फीसद की तेजी आ चुकी है और यह भविष्य के अनुमानों के आगे चला गया है। सरकार बीमा संशोधन, जीएसटी और इंफ्रास्ट्रक्चर की रुकी परियोजनाएं चालू कराते हुए ग्रामीण रोजगार योजना की शक्ल बदल सकती है। हालांकि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए उसे अन्य दलों के समर्थन की जरूरत होगी। इस विधेयक के लिए उसे करीब आधे राज्यों की भी स्वीकृित चाहिए। बहरहाल, अभी वित्त आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है जो केंद्र-राज्य संसाधनों को लेकर जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही योजना आयोग समाप्त करने की प्रक्रिया के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। उसके ऊपर भारतीय उद्यमियों के पास फंसी राष्ट्रीय बैंकों की बड़ी रकम वापस लाने और विदेशी बैंकों में जमा काले धन का विवरण हासिल करने की जिम्मेदारी भी है। इस दौरान नए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम और वित्त सचिव राजीव महर्षि की नियुक्ति की घोषणा इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। सरकार का इस साल का बजट कमोबेश यूपीए के बजट का ही अगला चरण था पर अगला मौलिक बजट होगा। फिलहाल हम संकट के बाहर नहीं हैं पर कह सकते हैं कि यह दीपावली अर्थव्यवस्था व सरकार दोनों के लिए शुभ संकेत दे रही है।