Monday 27 October 2014

मैनुफैक्चरिंग नहीं, सेवा क्षेत्र को बढ़ाइए




मैनुफैक्चरिंग नहीं, सेवा क्षेत्र को बढ़ाइए

23, OCT, 2014, THURSDAY

अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तीन क्षेत्र में विभाजित किया जाता है-कृषि, मैनुफैक्चरिंग और सेवा। मैनुफैक्चरिंग में भौतिक माल का उत्पादन गिना जाता है जैसे पंखा, कम्प्यूटर अथवा कपड़े का। सेवा क्षेत्र में टेलीविजन प्रोग्राम, डाक्टर, पर्यटन आदि गिने जाते हैं। इस क्षेत्र में भौतिक माल का उत्पादन नहीं होता है। डाक्टर द्वारा दी गई सलाह 'सेवाÓ में गिनी जाती है जबकि दुकानदार द्वारा बेची गई दवा 'मैनुफैक्चरिंग Ó में, और दवा बनाने के लिये उत्पादित जड़ी बूटियां कृषि क्षेत्र में आती हैं। वित्तीय वर्ष 2014-15 की पहली तिमाही अप्रैल से जून में मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में विकास दर 1 प्रतिशत से कम रही है जबकि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की विकास दर 5.7 प्रतिशत रही है। कृषि की हालत कई वर्षों से ठंडी है। मैनुफैक्चरिंग भी ढीला हैै। इससे निष्कर्ष निकलता है कि विकास का स्त्रोत सेवा क्षेत्र है। 
      प्रश्न है कि आगे की रणनीति के लिये हम किस क्षेत्र को अर्थव्यवस्था का इंजन बनायें। अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा अपने यहां लगातार घटता जा रहा है। विकसित देशों में यह आज घटकर एक प्रतिशत से भी कम रह गया है। इसलिये कृषि को विकास का इंजन बनाना ... दूभर होगा। मैनुफैक्चरिंग में भौतिक माल का उत्पादन होता है। यहां समस्या है कि एक सीमा के बाद मनुष्य माल की खपत नहीं कर पाता है। जैसे आप दो की जगह दस रोटी की खपत शायद कर सकें लेकिन 100 रोटी की खपत करना असंभव है अथवा किचन में एक की जगह 20 फ्रिज लगा देंगे तो वह स्टोर रूम बन जायेगा। इस कारण माल की खपत सीमित होती है। तुलना में सेवाओं की खपत ज्यादा हो सकती है। जैसे मोबाइल फ ोन में आप हर घंटे नया गेम लोड कर सकते हैं। अथवा अंतरिक्ष में पर्यटन की टिकट खरीद सकते हैं। नागरिकों की आय में वृद्धि के साथ-साथ माल की खपत में वृद्धि कम और सेवाओं की खपत उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती है। अत: देखा जाता है कि अमीर देशों में अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 80 से 90 प्रतिशत होता है। 
हम भी इसी दिशा में चल पड़े हैं। 1991 में अपने देश में मैनुफैक्चरिंग और सेवाओं दोनों का हिस्सा 24-24 प्रतिशत था। यहां सेवाओं में मैं सरकारी सेवाओं जैसे नगर निगम द्वारा सफ ाई कराने को नहीं गिन रहा हूं चूंकि चर्चा का विषय बाजार आधारित है अर्थव्यवस्था है। 1991 से 2013 तक मैनुफैक्चरिंग का हिस्सा वही 24 प्रतिशत पर टिका रहा है। तुलना में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 47 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इसका अर्थ यह नहीं कि मैनुफैक्चरिंग में वृद्धि नहीं हो रही है। नये कारखाने स्थापित हो रहे हैं। परन्तु देश की अर्थव्यवस्था में यदि 7 प्रतिशत की वृद्धि हर वर्ष हो रही है तो मैनुफैक्चरिंग में भी 7 प्रतिशत की ही होने से मैनुफैक्चरिंग का हिस्सा स्थिर है। सेवा क्षेत्र में वृद्धि अर्थव्यवस्था की चाल से दोगुनी स्पीड से होने से इस क्षेत्र का हिस्सा बढ़ रहा है। तदानुसार सेवा का हिस्सा बढ़ रहा है और कृषि का हिस्सा घट रहा है। निष्कर्ष निकलता है कि अपने देश में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र में तीव्र विकास हो रहा है जबकि मैनुफैक्चरिंग  में ठहराव आ रहा है। अत: हमें मैनुफैक्चरिंग के उगते सूरज को पकडऩा चाहिये। 
दूसरी समस्या प्रतिस्पर्धा की है। वर्तमान में चीन का माल सस्ता पड़ रहा है। वहां उद्योगों से पर्यावरण का मूल्य वसूल नहीं किया जा रहा है। जैसे किसी कागज के कारखाने ने गंदे पानी को बिना साफ  किये नदी में डाल दिया। मछली मर गई, लोग बीमार हो गये, पानी प्रदूषित हो गया। कारखाने को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाना पड़ा और माल की उत्पादन लागत कम आयी। लेकिन हमारे कारखाने को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना पड़ता है और हमारी लागत जादा आती है। हम विश्व बाजार से बाहर हो जाते हैं। भारत को मैनुफैक्चरिंग हब बनाने के लिये जरूरी होगा कि हम चीन की बराबरी में सस्ता माल बनायें जिसके लिये हमें अपने पर्यावरण को नष्ट करना होगा। 
तीसरी समस्या रोजगार की क्वालिटी की है। मैनुफैक्चरिंग में 80 प्रतिशत रोजगार क्लास 4 के होते हैं जबकि आइटी कम्पनी में 80 प्रतिशत इंजिनियरों के। मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देकर हम अपने देश वासियों को क्लास 4 के रोजगार ही उपलब्ध करा पायेंगे। इन सभी कारणों से मैनुफैक्चरिंग  के स्थान पर सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना उचित दिखता है। प्रधानमंत्री ने देश के युवाओं के हुनर में सुधार को प्राथमिकता दी है। यह कदम भी सेवा क्षेत्र में मेल खाता है। हमारी संस्कृति में माथे पर टीका लगाना, च्यवनप्राश का सेवन करना, योगादि करना प्रचलित है जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता का विकास होताा है जो कि सेवा क्षेत्र से मेल खाता है। मैनुफैक्चरिंग में हुनर की जरूरत कम पड़ती है। 
प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया का नारा  देकर मैनुफैक्चरिंग के विस्तार को विदेशी निवेश का आवाहन किया है। यदि देश को मैनुफैक्चरिंग हब बनाना ही है तो इसके लिये विदेशी निवेशों को गुहार लगाने की क्या जरूरत है? क्या हमारे उद्यमी यह कार्य नहीं कर सकते हैं? अर्थशास्त्रियों में विदेशी निवेश के दीर्घकालीन प्रभावों को लेकर सहमति नहीं है। मेरे समेत एक वर्ग मानता है कि इसका तत्काल सुप्रभाव पड़ता है परन्तु दीर्घकाल में यह अभिशाप बन जाता है। अत: विदेशी कम्पनियों को वहीं बुलाना चाहिये जहां विशेष तकनीक हासिल करनी हों। हमारी अर्थव्यवस्था का मूल इंजन स्वदेशी निवेश ही होना चाहिये। 
मुझे समझ नहीं आता कि मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र के इन संकट के बावजूद हमारे अधिकारियों को यह क्षेत्र क्यों पसन्द है। एक संभावना है कि इसमें घूस के प्रचुर अवसर हैं। कारखाने से भूमि अधिग्रहण, पलूशन कन्ट्रोल, फैक्ट्री एक्ट इत्यादि तमाम सरकारी विभागों को घूस वसूलने का अवसर मिलता है। साफ्टवेयर कम्पनी के लिये भूमि अधिग्रहण की जरूरत नहीे होती है। संभव है कि इस कारण नौकरशाहों को मैनुफैक्चरिंग रास आता है और प्रधान मंत्री उनकी बात को दोहरा रहे हैं। 
सेवा क्षेत्र के विस्तार के लिये सरकार किस प्रकार के कदम उठा सकती है इसके दो उदाहरण देना चाहूंगा। दुनिया में एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार को चाहिये कि हर जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र की तरह विदेशी भाषा संस्था स्थापित करे। ऐसा करने से समयक्रम में चीनी भाषा से फ्रेंच में अनुवाद का काम हमें मिल सकता है। अपने देश में स्वास्थ पर्यटन का विकास सहज ही हो रहा है। जिस आपरेशन को अमरीका में 50 लाख रुपये लगते हैं वह भारत में 5 लाख में कराया जा सकता है। समस्या है कि भारतीय अस्पतालों के द्वारा गड़बड़ी किये जाने पर स्वास्थ पर्यटक के लिये भयंकर संकट पैदा हो जाता है। वह जिला कन्ज्यूमर फ ोरम में दस साल तक केस नहीं लड़ सकता है। अत: सरकार को ''हेल्थ टूरिज्म पुलिसÓÓ की स्थापना करनी चाहिये जो ऐसे पर्यटकों की मदद करें। इस प्रकार के कदम उठाने से हमारी अर्थव्यवस्था 
सेवा क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले नये अवसरों को पकड़ सकेगी और मजबूती से विश्वजय को चल पड़ेगी। देशवासियों को अच्छे रोजगार मिलेंगे और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। अत: मेक इन इंडिया के स्थान पर मैनेज्ड एण्ड प्लान्ड इन इंडिया का नारा दे तो हम जादा आगे जा सकेंगे।

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