सोने की फीकी चमक
12-09-14
भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कुछ ऐसी चीजें अजूबी लगती हैं, जो अन्य कई देशों में स्वाभाविक लग सकती हैं। भारत में पिछले काफी वक्त से सोने के दाम कम हो रहे हैं और सोने की बिक्री भी घट गई है। फिलहाल तो पितृपक्ष चल रहा है, जिस दौरान भारत में कोई खरीदी नहीं की जाती, इससे भी बिक्री घटी है। इसके बाद नवरात्रि और दशहरा, दिवाली का वक्त आएगा, उस समय सोने-चांदी की मांग बढ़ती है। इसी वक्त शादी का मौसम शुरू होता है, इसलिए सोने की बिक्री और दाम बढ़ सकते हैं, लेकिन पिछले कुछ वक्त से सोने की चमक भारतीयों की नजर में कुछ घटी है। आम भारतीय के लिए सोने के साथ जुड़ा हजारों साल का रिश्ता ज्यादा नहीं बदला है और आसानी से बदलेगा भी नहीं, लेकिन निवेशकों के लिए सोना उतना आकर्षक नहीं रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम लगातार गिरते जा रहे हैं, इसलिए सोने में निवेश करना फिलहाल फायदे का सौदा नहीं है, और शायद निकट भविष्य में भी नहीं रहेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत सीधे-सीधे डॉलर की कीमत से जुड़ी होती है। जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गति नीचे की ओर होती है और डॉलर कमजोर होने लगता है, तो सोने की मांग बढ़ने लगती है। जब बाजार में डॉलर कमजोर होने लगता है, तो तमाम देशों के लोग और उद्योग अपनी तिजोरियों में रखे डॉलर बेचकर प्राचीन काल से ही सुरक्षित मानी जाने वाली धातु में निवेश करने लगते हैं। पिछले करीब दो-तीन साल से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बारे में अच्छी खबरें आ रही हैं, इसलिए डॉलर के दाम चढ़े हुए हैं और सोने के दाम गिर रहे हैं। लेकिन स्वर्णप्रेमी भारतीयों ने इसे स्वर्णिम अवसर मानकर खरीदारी बढ़ा दी थी। इससे भारत में सोने के आयात की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ गया। भारत के आयात बिल में खनिज तेल के बाद सबसे ज्यादा खर्च सोने के आयात पर होता है। यह संकट इतना बढ़ा कि सोने के आयात पर सरकार ने नियंत्रण लगा दिया और नतीजे में सोने की तस्करी का धंधा फिर शुरू हो गया, जो अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से बंद हो गया था। लेकिन पिछले कुछ दिनों में स्थिति थोड़ी बदली है। नई सरकार के आने से अर्थव्यवस्था के बेहतर होने की उम्मीद बढ़ी है और इसकी वजह से शेयर बाजार में जबर्दस्त उछाल है। ऐसे में, निवेशकों के लिए सोने से बेहतर विकल्प शेयर में पैसा लगाना है। उपभोक्ता वस्तुओं की मांग भी बढ़ी है, इसका अर्थ यह है कि लोग अब बचत तो कर रहे हैं, लेकिन खर्च भी कर रहे हैं। सोने के दामों में लगातार गिरावट की वजह से भी लोग दीर्घकालिक बचत के दूसरे विकल्पों की ओर जा रहे हैं। अगर जन-धन योजना जैसे कदमों से देश के बैंकों में ज्यादा संख्या में खाते खुलते हैं, तो वह भी बचत का एक जरिया हो सकता है। सरकार के लिए जरूर यह अच्छी खबर है, क्योंकि इससे सोने का आयात कम हो रहा है और विदेशी मुद्रा की बचत हो रही है। हो सकता है कि इससे तस्करी भी कम हो। खनिज तेल के आयात पर विदेशी मुद्रा सबसे ज्यादा खर्च होती है, और खनिज तेल के दाम भी काफी वक्त से नीचे आ रहे हैं। पश्चिम एशिया में जारी हिंसा के बावजूद खनिज तेल की आपूर्ति, मांग से ज्यादा है, इसलिए दाम नहीं बढ़ रहे हैं। इन वजहों से आयात-निर्यात के बीच फर्क यानी चालू खाते का घाटा फिलहाल मामूली राहत की स्थिति में आ गया है। यह देखना होगा कि त्योहारों और शादी के मौसम में सोने की मांग और दाम कितने बढ़ते हैं, लेकिन फिलहाल कुलजमा हालात बेहतरी की ओर जाते तो लग रहे हैं।
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