Monday 27 October 2014

केंद्रीय बजट




मजबूत जनादेश की झलक

:Friday,Jul 18,2014 

नरेंद्र मोदी को एक ऐसा प्रधानमंत्री माना जाता है जो कड़े निर्णय लेते हैं। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर भी देखा जाता है जो जरूरत पड़ने पर अलोकप्रिय निर्णयों से भी पीछे नहीं हटते। अपनी सरकार के पहले बजट में मोदी ने अपनी इस छवि को पुष्ट किया है और जनता को साफ कर दिया कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वह कड़वी दवा के इस्तेमाल से भी पीछे नहीं हटेंगे। केंद्रीय बजट के संदर्भ में जनता को कुछ कड़े उपायों के अपनाए जाने की प्रत्याशा थी, लेकिन ऐसा कुछ खास नहीं हुआ। इस क्रम में कड़वी दवा रेल भाड़े में 14 फीसद की बढ़ोतरी और बजट से पूर्व पेट्रोल, गैस की कीमतों में वृद्धि रही। हालांकि आम बजट में सरकार ने करदाताओं को कुछ राहत भी प्रदान की है। केंद्रीय बजट में सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र को सुधारने के लिए कदम उठाने, बुनियादी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने, विदेशी निवेशकों को प्रेरित करने के साथ-साथ रोजगार सृजन के माध्यम से युवाओं को सशक्त करने के उपायों की घोषणा की है। रेलवे बजट में भी व्यावहारिक कदमों पर जोर दिया गया और रेलवे की वित्ताीय हालत में सुधार पर बल देने के साथ ही पहले से चल रही परियोजनाओं को पूरा करने, रेलवे की सुरक्षा में सुधार और सफाई व गति बढ़ाने पर ध्यान दिया गया। देश की अर्थव्यवस्था का संचालन जिस तरीके से मनमोहन सिंह ने किया उसके मद्देनजर यह अवश्य कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने अपने पहले रेल और आम बजट में जिम्मेदारी का परिचय देते हुए निरंतरता को कायम रखा और जहां जरूरी था वहां बदलाव भी किए। उदाहरण के तौर पर रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने संसद में बताया कि पिछले 10 वषरें में 6,000 करोड़ रुपये की लागत वाली 99 नई लाइनें बिछाने की योजनाओं की घोषणा की गई, लेकिन महज एक ही योजना को पूरा किया गया। इसी तरह चार परियोजनाएं ऐसी हैं जिन्हें 30 वर्ष पहले शुरू किया गया, लेकिन आज भी वे पूरी नहीं हो सकी हैं। इस क्रम में पूर्व की सरकारों ने लोकप्रियता का ध्यान रखा और परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर बल देने के बजाय नई योजनाओं को मंजूरी देती रहीं। इसका नतीजा यह रहा कि पिछले तीन दशकों में 1,57,883 करोड़ रुपये लागत वाली 676 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिनमें से आधी से भी कम पूरी हुईं। आश्चर्यजनक यह है कि इन अधूरी परियोजनाओं की लागत अब बढ़कर 1,82,000 करोड़ रुपये पहुंच गई है। मोदी सरकार ने इन अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने और गड़बड़ियों को दूर करने का निर्णय लिया है। क्या यह शर्म की बात नहीं है कि अपने कार्यकाल के 10 वषरें में मनमोहन सिंह घोषित 99 परियोजनाओं में से महज एक को ही पूरा कर सके। यह अर्थव्यवस्था को लेकर उनकी समझ तथा नेतृत्व क्षमता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। सौभाग्य से रेल मंत्री सदानंद गौड़ा और वित्ता मंत्री अरुण जेटली ने अनावश्यक लोकप्रियता से बचते हुए और व्यावहारिक रास्ते का चुनाव करते हुए रेल बजट व आम बजट प्रस्तुत किया। यही कारण है कि प्रधानमंत्री और उनकी टीम प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने विरासत में प्राप्त खराब आर्थिक हालात की चुनौती को स्वीकार करते हुए भारत की वित्ताीय दशा को सुधारने का निर्णय लिया। सरकार ने 2014 के बजट को समग्र आर्थिक विकास के मद्देनजर विजन के रूप में प्रस्तुत किया। चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री ने जनता से सभी घरों को 24 घंटे बिजली देने का वादा किया था। मोदी सरकार ने इस दिशा में सही कदम उठाते हुए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के लिए धन आवंटित किया है। प्रधानमंत्री युवाओं के स्किल विकास पर भी जोर देते रहे हैं, ताकि नियोक्ता की जरूरतों के अनुरूप वे योग्यता हासिल कर सकें। इसके लिए बजट में नेशनल मल्टी स्किल मिशन की बात कही गई है। स्वच्छ भारत अभियान मोदी की एक अन्य पसंदीदा योजना है, इसके लिए बजट में पर्याप्त ध्यान दिया गया है। इसके तहत 2019 तक सभी घरों में शौचालय सुनिश्चित कराने का लक्ष्य है। अपने चुनाव अभियान के क्त्रम में जब मोदी वाराणसी पहुंचे तो उन्होंने जनता से कहा था कि वह इस पवित्र नगरी में मां गंगा के बुलावे पर आए हैं। पवित्र गंगा के प्रति मोदी ने अपना आदरभाव दिखाया और इस शहर को नमामि गंगा योजना के तहत बजट में जेटली ने 2,000 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की। गंगा जलमार्ग के लिए भी 4,200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। इसके अतिरिक्त वाराणसी, हरिद्वार और गंगा के किनारे स्थित अन्य तीर्थ केंद्रों के घाटों की मरम्मत तथा जीर्णोद्धार के लिए 100 करोड़ आवंटित किए गए। चुनाव अभियान में मोदी ने हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तार राज्यों के विकास पर बल दिया था। इसके मद्देनजर पूर्वोत्तार में रेल परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त 1,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया तथा मणिपुर में खेल विश्वविद्यालय के लिए धन स्वीकृत किया गया। राजनीतिक महत्व की दृष्टि से देखें तो पिछले 30 वषरें में यह पहला केंद्रीय बजट है जिसे बहुमत प्राप्त किसी एक दल ने पेश किया है। इससे पहले 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में भारी बहुमत हासिल करने वाली कांग्रेस सरकार के समय ऐसा हुआ था, इसलिए मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को बिना किसी बाधा के स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार है। हालांकि इस तरह की स्वतंत्रता की स्थिति में सरकार किसी निर्णय को लेने अथवा न लेने के लिए कोई बहाना नहीं बना सकती। केंद्रीय बजट की दिशा देखते हुए हम कह सकते हैं कि जनादेश के अनुरूप मोदी सरकार ने अपना सर्वोत्ताम काम किया है और कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं जिन्हें कोई गठबंधन सरकार शायद ही ले पाती। उदाहरण के तौर पर सब्सिडी उपायों की समीक्षा के लिए एक्सपेंडीचर मैनेजमेंट कमीशन अथवा व्यय प्रबंधन आयोग का गठन। इस मद में प्रति वर्ष उपभोक्ताओं को 2.6 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती है। यह निर्णय कांग्रेस समेत अन्य सभी राजनीतिक दल वोट बैंक के मद्देनजर शायद ही ले पाते। इसी प्रकार गंगा की सफाई और घाटों की मरम्मत आदि के लिए 2,000 करोड़ देने का निर्णय सेक्युलर राजनीति के चलते शायद ही हो पाता। वामपंथी पार्टियों पर निर्भर कोई सरकार बीमा और रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ बढ़ाने का निर्णय नहीं ले सकती थी। नरेंद्र मोदी तमाम राजनीतिक बाध्यताओं से मुक्त हैं और इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की प्राथमिकताओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं। इससे एक बार फिर देश उच्च विकास दर की राह पर अग्रसर हो सकेगा।
[लेखक ए. सूर्यप्रकाश, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
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