Monday 27 October 2014

औद्योगिक उत्पादन




फैक्ट्रियों में फिर सुस्ती

नवभारत टाइम्स | Sep 15, 2014,

औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) के ताजा आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर देश में पिछले कुछ समय से देखे जा रहे उत्साह पर पानी फेरने का काम किया है। इन आंकड़ों के मुताबिक इस बार जुलाई महीने के औद्योगिक उत्पादन में पिछले साल की जुलाई के मुकाबले सिर्फ 0.5 फीसदी बढ़त दर्ज की गई, जो पिछले चार महीनों में सबसे कम है। माना जा रहा था कि यह बढ़त 1.5 फीसदी से ऊपर रहेगी। इस कम ग्रोथ की सबसे बड़ी वजह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आई 1 फीसदी की गिरावट है। इससे पहली नजर में नतीजा यही निकलता है कि नई सरकार के साथ जोड़ी गई उम्मीदों ने बाजार का माहौल जरूर बदला, लेकिन इससे अर्थव्यवस्था में भरोसा करने लायक गति नहीं पैदा हो पाई है। दरअसल, भारत जैसे विशाल देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव इतनी तेजी से आ भी नहीं सकता। इसके लिए ज्यादा गंभीर और लंबे प्रयासों की जरूरत है। नई सरकार की तरफ से सड़क, रेल, बंदरगाह आदि इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े मामलों पर ऐसे बड़े फैसलों के संकेत अब तक नहीं आए हैं, जो सरिया, सीमेंट वगैरह बनाने वाले कारखानों को अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकें। लेकिन, सरकारी प्रयासों को एक तरफ रख दें तो भी त्योहारों का मौसम शुरू होने वाला है। उपभोक्ता सामानों का उत्पादन जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में ही सबसे ज्यादा तेजी पर होता है। इस हिसाब से भी जुलाई में औद्योगिक उत्पादन ऊपर की तरफ चढ़ता हुआ दिखना चाहिए था। अगर ऐसा नहीं दिख रहा है तो इसकी वजह यह लगती है कि सरकार की ओर से मायूस उद्योग जगत को प्रकृति से भी कोई पॉजिटिव संकेत नहीं मिला। खराब मानसून की आशंका काफी हद तक सही साबित होने से ग्रामीण बाजारों में मांग बढ़ने की उम्मीद जाती रही। कुछ एक्सपर्ट यह भरोसा जता रहे हैं कि अगस्त महीने के आंकड़े काफी बेहतर होंगे। लेकिन, जमीनी हकीकत इतनी जल्दी बदलने के आसार नहीं दिखते। अगस्त के आंकड़े उत्पादन बढ़ने से नहीं, सिर्फ बेस इफेक्ट की वजह से सुधर सकते हैं। पिछले साल जुलाई में आईआईपी में 2.6 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई थी, जबकि अगस्त में यह घट कर 0.6 फीसदी पर आ गई थी। जाहिर है, अगले महीने आने वाले अगस्त के आईआईपी आंकड़े थोड़ा-बहुत बेहतर नजर आते भी हैं, तो यह अर्थव्यवस्था की वास्तविक बेहतरी का संकेत नहीं होगा। बहरहाल, इन कमजोर आंकड़ों में सरकार के लिए यह अहम संदेश छुपा है कि कठिन और जरूरी फैसले लेने में वह अब बिल्कुल देर न करे। अर्थव्यवस्था की राह में जो रोड़े पड़े हैं, उन्हें हटाने की शुरुआत जल्द से जल्द की जाए। हां, ऐसा करते हुए जो स्पीड ब्रेकर नागरिक सुरक्षा की दृष्टि से सोच-समझ कर बनाए गए हैं, उन्हें ही रोड़ा मान लेने की गलती न की जाए। 
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