Monday 27 October 2014

ई-रिटेल का खेल




ई-रिटेल का खेल, अभी तो शुरुआत है

प्रमोद जोशी 

फ्लिपकार्ट पर 10 घंटों में तकरीबन एक अरब हिट्स का आना भारत के उस मध्य वर्ग की ताकत का अंदाज देता है, जो अभी पूरी तरह विकसित भी नहीं है। ऑनलाइन शॉपिंग के प्रति आकर्षण की वजह है आकर्षक ऑफर और वाजिब दाम। इसके अलावा छोटे से कस्बे में बैठा व्यक्ति भी ऐसी चीजें खरीद सकता है, जो उसके स्थानीय बाजार में नहीं मिलतीं इधर भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है और मोबाइल फोन से भी सीधी खरीदारी हो रही है। इस ऑनलाइन- कल्चर ने बाजार अर्थशास्त्रियों को भी चौंकाया है
फ्लिपकार्ट की ‘बिग-बैंग’ सेल के बाद भारत के ई-रिटेल को लेकर कई बातें रोशनी में आई हैं। इसकी अच्छाइयों और बुराइयों के किस्से सामने हैं, कई पेचीदगियों ने सिर उठाया है और संभावनाओं का नया आसमान खुला है। इस नए बाजार ने व्यापार कानूनों के छिद्रों की ओर भी इशारा किया है। यह बाजार इंटरनेट के सहारे है जिसकी पहली पायदान पर ही हम खड़े हैं। ‘बिग बिलियन डे’ की सेल ने नए मायावी संसार की झलक भारतवासियों को दिखाई, साथ ही फ्लिपकार्ट की प्रबंध क्षमता और तकनीकी प्रबंध पर सवाल भी उठाए। इसके लिए उसने अपने ग्राहकों से माफी मांगी। उसकी असली परीक्षा अब अगले कुछ दिनों में होगी। इस एक दिनी सेल के दौरान फ्लिपकार्ट पोर्टल पर शॉपिंग करने वालों की संख्या 15 से 20 लाख के बीच ही रही होगी। इतने लोगों तक सही समय पर सही सामान पहुंचाना दूसरी बड़ी चुनौती है। लॉजिस्टिक्स कारोबार से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि ग्राहकों को देरी के लिए तैयार रहना चाहिए। फ्लिपकार्ट ने 12 लाख से ज्यादा के ऑर्डर की तैयारी की थी। अब कहा जा रहा है कि बिक्री इससे दोगुनी हुई है। हो सकता है कि ऑर्डर पूरे करने में महीना लग जाए। इस सेल के बाद एमेजॉन, नापतोल, स्नैपडील, माइंट्रा और तमाम कंपनियां अपनी- अपनी डील के साथ मैदान में उतर आई हैं। वहीं दिल्ली के चांदनी चौक, कनॉट प्लेस और लाजपत नगर, लखनऊ के हजरतगंज और अमीनाबाद, बेंगलुरु के एमजी रोड के बाजारों की रौनक अब उतनी नहीं लगती, जितनी इस त्योहारी मौसम में होती थी। इंटरनेट अब बाजार के रास्ते घरों में प्रवेश कर रहा है। यह हाल तब है जब देश की तकरीबन 13 फीसद आबादी यानी तकरीबन 15 करोड़ लोग ही नेट से जुड़े हैं। फ्लिपकार्ट पर 10 घंटों में तकरीबन एक अरब हिट्स का आना भारत के उस मध्य वर्ग की ताकत का अंदाज देता है, जो अभी पूरी तरह विकसित भी नहीं है। ऑनलाइन शॉपिंग के प्रति आकर्षण की वजह है आकर्षक ऑफर और वाजिब दाम। इसके अलावा छोटे से कस्बे में बैठा व्यक्ति भी ऐसी चीजें खरीद सकता है, जो उसके स्थानीय बाजार में नहीं मिलतीं। जिनके लिए उसे दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु जाना पड़ता। इधर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है और मोबाइल फोन से सीधी खरीदारी हो रही है। इस ऑनलाइन-कल्चर ने बाजार अर्थशास्त्रियों को भी चौंकाया है।
इस सेल में युवा वर्ग के साथ-साथ महिलाओं की जबर्दस्त हिस्सेदारी ने उस ताकत की ओर भी इशारा किया है जिसने इस साल लोकसभा चुनाव के परिणामों की शक्ल बदल दी थी। इस सेल को लेकर सोशल मीडिया में जो माहौल बना, वह भी खासा रोचक है। फेसबुक और ट्विटर पर यह सेल छा गई और लगता है अगले कुछ दिनों तक छाई रहेगी। अभी तो दीपावली के मौके पर भारी खरीदारी होगी। एमेजॉन की सेल 10 से 16 अक्तूबर तक चलेगी। स्नैपडील ने भी अपनी दीवाली सेल को 25 अक्टूबर तक बढ़ा दिया है। हाल में कुछ मोबाइल फोन केवल ई-बाजार में ही उपलब्ध कराए गए। ई-कंपनियां नए ग्राहक पकड़ने के लिए दाम गिरा रहीं हैं। इससे कुछ उत्पादक नाराज भी है। उनका मानना है कि इससे बाजार बिगड़ रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माता एलजी ने आगाह किया है कि ई-कॉमर्स पोर्टल से खरीदे गए प्रोडक्ट के असली होने की जिम्मेदारी कंपनी की नहीं है। पर लगता नहीं कि इससे नेट-खरीदारी रुकेगी। इसका नियंतण्र चलन बढ़ रहा है। फ्लिपकार्ट ने जो बाजार तैयार किया उसका फायदा उठाने दुनिया का सबसे लोकप्रिय ई-रिटेल पोर्टल एमेजॉन भी भारत आ चुका है और उसने दो अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। माना जा रहा है कि अगले तीन सालों में भारत में 50 हजार से ज्यादा लोगों के लिए ईिरटेल में रोजगार पैदा होंगे। ई-रिटेल का पहला झटका देश के व्यापारियों को लगा है, जो मल्टी- ब्रांड खुदरा में एफडीआई को काफी हद तक रोकने में कामयाब हुए थे। व्यापारियों के संगठनों ने ऑनलाइन कारोबार की निगरानी और नियमन के उपाय करने की मांग की है। इस पर वाणिज्य और उद्योग मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा है, कि हम इसे देखेंगे। हमारे यहां एकल ब्रांड रिटेल में 100 फीसद और मल्टी-ब्रांड रिटेल में 51 फीसद विदेशी निवेश की इजाजत है, लेकिन ई-कॉमर्स के बारे में ऐसा कोई फैसला नहीं है। ई-रिटेल कंपनियां अपना माल नहीं बेचतीं बल्कि ग्राहक और उत्पादक के बीच कमीशन एजेंट का काम करती हैं। वे केवल एक मंच मुहैया कराती हैं जहां खरीदार और विक्रेता आपस में मिलते हैं। यह खुदरा नहीं बल्कि सेवा क्षेत्र का कारोबार है इसलिए इसमें विदेशी निवेश नहीं रु क पाया। यह भी सही है कि यह बाजार भारतीय कारीगरों और छोटे निर्माताओं के माल को ग्राहक तक ले जाने में जितनी तेजी से सफल हो रहा है, उतना सफल खुदरा बाजार नहीं है। खुदरा बाजार पूरे देश में एक साथ माल दिखाने का काम नहीं करता। ई- कॉमर्स बैकरूम काम के लिए काफी बड़ी संख्या में रोजगार भी तैयार करता है। भारत में तकरीबन 25 प्रमुख ई-रिटेल कंपनियां हैं। इनकी लोकप्रियता के साथ-साथ इन कंपनियों के भावों की तुलना करने वाले पोर्टलों का कारोबार भी विकसित हो रहा है। हैदराबाद का पोर्टल माईस्मार्टप्राइस भारत में एमेजॉन, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट और नापतोल सहित अनेक ई-रिटेल स्टोरों की कीमतों का विवरण और विशेष डील मुहैया कराता है। क्रोम और मोजीला पर ऐसे एक्सटेंशन उपलब्ध हैं जो तमाम साइटों की कीमतें कम्पेयर कर सकते हैं। इन्हीं जानकारियों के आधार पर इस सेल के बाद सोशल मीडिया पर र्चचा है कि जिन चीजों के दाम कम थे, उन्हें बढ़ाकर फिर छूट दी गई। नेट की खरीदारी नए शौक के रूप में विकसित हो रही है। ग्राहकों का मन इससे न टूटे, इसके लिए विक्रेता को भी ध्यान रखना पड़ेगा। इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के अनुसार केवल 13 फीसद भारतीय ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। चीन में 44 फीसद, ब्राजील में 42.2 फीसद और दक्षिण अफ्रीका में 39.4 फीसद नागरिक इंटरनेट पर हैं। भारत में ई-कॉमर्स आज भी फायदे का सौदा नहीं है। फिर भी उसकी धूम है। इसका कारण क्या है? फ्लिपकार्ट के सह संस्थापक और सीईओ सचिन बंसल का कहना है कि कंपनी का उद्देश्य भारत में ई-कारोबार के लिए इको सिस्टम बनाने का है, क्योंकि देश में 50 करोड़ से ज्यादा लोग अगले पांच साल में ऑनलाइन होने वाले हैं। यानी यह भविष्य का संकेतक है। अनुमान है कि भारतीय ई-बाजार इस वक्त 8 से 15 अरब डॉलर के बीच का है और 2017 तक यह 30 फीसद की सालाना दर से बढ़ेगा। इसमें ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक्स और फैशन कारोबार है। रिटेल में प्रवेश पाने में विफल वॉलमार्ट अब ई-रिटेल में घुसने की तैयारी में है। एमेजॉन ने पिछले साल ही भारतीय बाजार में प्रवेश किया है और अपनी जड़ें बड़ी तेजी से जमा ली हैं। अभी यह बाजार गुब्बारे की तरह फूल रहा है। आप पूछ सकते हैं कि इसके फूटने का खतरा तो नहीं है? फिलहाल तमाशा देखिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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धोखे का कारोबार

जनसत्ता 10 अक्तूबर, 2014: पिछले कुछ समय से इंटरनेट के जरिए यानी ऑनलाइन खरीद-बिक्री ने हमलावर तरीके से सामान्य खुदरा कारोबारियों और ग्राहकों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। लेकिन बीते छह अक्तूबर को आॅनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी फ्लिपकार्ट की एक योजना के चलते जो हुआ उससे व्यवसाय के इस स्वरूप पर गहरे सवाल उठे हैं। कुछ साल पहले शुरू हुए ऑनलाइन कारोबार में आज कई बड़ी कंपनियां शामिल हो चुकी हैं और उनके बीच कड़ी प्रतियोगिता चल रही है। इसी प्रतिद्वंद्विता में अपना बाजार बढ़ाने के लिए फ्लिपकार्ट ने अचानक एक ‘बिग बिलियन डे’ सेल की घोषणा कर दी और कई उत्पादों पर भारी रियायत की पेशकश की।
आज लाखों लोग ऑनलाइन खरीदारी पर निर्भर हैं और हर पल यहां विज्ञापित आकर्षक प्रस्तावों पर नजर रखते हैं। शायद इसीलिए फ्लिपकार्ट पर कई चीजों की बिक्री शुरू होने के तुरंत बाद ‘स्टॉक खत्म’ की सूचना आने लगी। इसके अलावा, जिन लोगों ने आॅर्डर कर दिया था, उनमें से बहुतों को बाद में रद्द कर दिया गया। एक ओर, फ्लिपकार्ट ने अपनी वेबसाइट को एक अरब हिट मिलने और छह अरब के सामान खरीदे जाने का दावा किया, वहीं ग्राहकों के बीच भारी नाराजगी फैली। बड़े पैमाने पर ग्राहकों की शिकायतों को देखते हुए सही ही वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने चिंता जताई और जरूरत पड़ने पर ई-रिटेल पर अलग नीति बनाने की बात कही। ग्राहकों का भरोसा व्यापार की सबसे जरूरी शर्त होती है। लेकिन फ्लिपकार्ट की इस कवायद से उसी को सबसे ज्यादा ठेस पहुंची है। शायद इसी से फिक्रमंद फ्लिपकार्ट के संस्थापकों ने पोर्टल की साख बचाने के लिए अपने ग्राहकों को लंबा-चौड़ा माफीनामा भेजा। लेकिन सवाल है कि उसके इतने बड़े और खुले आयोजन की विफलता के बाद ग्राहक उस पर भरोसा कैसे करें!
हालांकि यह एक गैरजागरूक उपभोक्ता-वर्ग की भी पहचान कराता है। अगर ढाई हजार के किसी मोबाइल की कीमत एक रुपए या करीब चौदह हजार रुपए के ‘टैबलेट’ चौदह सौ में मिलने की घोषणा की जा रही हो तो समझने की जरूरत है कि यह धोखे के सिवा और क्या हो सकता है। इसी तरह दिन भर टीवी चैनलों पर सस्ती दर में उपभोक्ता वस्तुएं उपलब्ध कराने के दावे वाले विज्ञापन चलते रहते हैं। इनके झांसे में आकर रोज लोग ठगे जाते हैं।
लेकिन हमारे यहां उपभोक्ताओं को जागरूक और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिहाज से समाज और सरकारी तंत्र दोनों विफल हैं। विडंबना है कि इस बाबत फिलहाल कोई ऐसा दिशा-निर्देश नहीं है, जिसके तहत कारोबार के इस तौर-तरीके का नियमन किया जा सके। ऐसी कंपनियां खुद को भले सिर्फ ‘कमीशन एजेंट’ के रूप में पेश करें, इनके बेलगाम और हमलावर प्रचार के साथ-साथ बहुत सारी चीजों पर रियायत एक ऐसा पहलू है, जो सामान्य ग्राहकों को भी आकर्षित करता है। यही वजह है कि ज्यों-ज्यों इंटरनेट उपभोक्ताओं का बाजार बढ़ा है, ऑनलाइन खरीदारी भी नई ऊंचाइयां छू रही है। लेकिन इसका सीधा असर सामान्य खुदरा कारोबार पर पड़ा है। दरअसल, बड़ी पूंजी वाली कंपनियां कम या शून्य मुनाफे पर पहले अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर या खत्म करती हैं, फिर उपभोक्ताओं के सामने विकल्पहीन स्थितियां पैदा कर अकूत फायदा कमाने लगती हैं। खुदरा बाजार में वॉलमार्ट जैसी विशालकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दाखिल होने के विरोध के पीछे यही तर्क है। अब ई-कॉमर्स या ऑनलाइन खरीदारी के चलन ने उसी चुनौती का विस्तार किया है। इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
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